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एक कुत्ते की सज़ा मिली है सबको एक साथ,
एक की ख़ता ही बन गई सब कुत्तों का अपराध।
अगर इनका कोई वकील होता, ये भी बेगुनाह होते,
पर जब न्याय की आवाज़ गुम हो, सब दोषी मान लिए जाते।
एक दोष का बोझ सब पर डालना है ये कैसा इंसाफ़,
क्या ये न्याय की परिभाषा या भ्रम का फासला है?
सलाखों के पीछे शर्मनाक सन्नाटा है छाया,
जिसमें बेमक़सद हर मासूम को जेल की मिट्टी ने गले से लगाया।
अगर सिर्फ़ उस एक की गलती हो, हैं बाकी नादाँ कहाँ?
पर ऐसा लगता है जैसे सारी दुनिया पर ही गिरी हो पाप छाँव।
वकील की वाणी अगर कानों तक पहुंचती,
बेगुनाहों को छूट मिलती, और न्याय की सुनवाई होती।
ये कैद सिर्फ़ सलाखों की नहीं, इंसानियत का भी दमन है,
जिससे हर दिल रुक-रुक कर रोता है—ये प्रतिशोध नहीं, ये दमन है।
न्याय का वकील अगर पहुंचा होता—aankhon में मानवीय सवाल होता,
तो एक की सज़ा पूरे समुदाय को नहीं, औरों को राहत का हल होता।
लेकिन जब अदालत अँधेरी होती, जब आवाज़ दब जाती है—
तब बेमानी कैद से भी ज्यादा गहरी होती है इंसानियत की चोट, वो खुल जाती है।
शेरों में आपकी भावनाओं का विस्तार
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शुरुआत (Lines 1–2): आपके मूल शब्दों को मैंने लयबद्ध रूप में बरकरार रखा है, जिसमें “एक कुत्ते की सज़ा” और “सब कुत्तों का अपराध” की भावनाएं साफ़ झलकती हैं।
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वकील का संदर्भ (Lines 3–4): यदि वकील होता—तो सब निर्दोष होते—ये विचार हमने संवेदनात्मक व शोकपूर्ण ढंग से उजागर किया है।
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न्याय और अन्याय की तुलना (Lines 5–6): एक दोष का बोझ पूरे समुदाय पर डालना कैसा अन्याय है, इसे आपत्तिजनक तौर पर उठाया गया है।
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मानवता पर चोट (Lines 7–8): सलाखों की कैद बेमक़सद है; यह कैद सिर्फ भौतिक नहीं—इंसानियत को भी कुचलती है।
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वकील की भूमिका (Lines 9–10): एक वकील कितना बदलाव लाता—न्याय सुने, निर्दोषों को राहत मिले—इस आशा को व्यक्त करते हैं।
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अंत का दर्द (Lines 11–12): जब अदालतें अँधेरी हों और न्याय आवाज़ न पाकर दब जाए—तब दमन इतना गहरा होता है कि यह इंसानियत की एक स्थायी चोट बन जाती है।
Introduction (~200–250 शब्द)
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हुक:
जब एक की गलती पूरे समुदाय की सज़ा बन जाए—तब न्याय नहीं, अंधेरा फैलता है। -
भावनात्मक पृष्ठभूमि:
यह Shayari उस तबाही का बयान है—जब वकील की आवाज़ नहीं पहुँचती और बेगुनाहों पर भी दोष का बोझ डाल दिया जाता है। -
क्या मिलेगा आगे:
Shayari की लाइन-बाय-लाइन व्याख्या, मास पनिशमेंट पर विचार, चर्चित न्याय सिद्धांत, FAQ और आपके भावी action prompts।
Conclusion + Call To Action (CTA)
Conclusion:
जब ‘justice’ system दोषी पहचानने में गलत है, तो system खुद ही जिम्मेदार बनता है—insanity नहीं बल्कि institutional failure। यह Shayari उस आवाज़ की पुकार है जो न्याय की गूंज को फिर से ताज़ा कर दे।
CTA:
यदि यह Shayari आपकी भावनाओं को छूती है, तो इसे शेयर करें। comment में बताएं—आपने कभी न्याय में बदलाव, समर्थन या voice amplification का अनुभव किया है?
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